नोएडा घोषणा

इंडिया ग्रीन्स पार्टी पारिस्थितिक-पर्यावरणीय, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक स्तर पर नागरिकों को सशक्त बनाकर समाज में समानता का ढांचा विकसित करने में यकीन करती है। भारत में साम्राज्यवादी सत्ता के खिलाफ आजादी के संघर्ष को अपनी राजनीतिक विरासत मानती है।


ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ स्वतंत्रता के संघर्षों ने ही भारत की संसदीय राजनीति की दिशा तय की। आधुनिक भारत के निर्माण के लिए संघात्मक संविधान और स्वतंत्रता, समता व बंधुत्व को स्वीकार किया। लेकिन 1947 के बाद की यात्रा के अनुभव यह है कि नागरिकों के सभी स्तरों पर खुद को सशक्त महसूस करने की भावना और समता में उनके भरोसे की क्षति हुई है।

इंडिया ग्रीन्स पार्टी देश की महान राजनीतिक विरासत को स्वीकार करती है। महात्मा गांधी के आंदोलन के मूल्यों के साथ खुद को जोड़ती है।

देश की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक तौर पर पीछे रखी गई जातियां, वर्ग व क्षेत्र में असंतोष बढ़ता गया है। यह आकलन किया गया है कि संसदीय राजनीति में जो प्रवृतियां हावी रही है वह नागरिकों और उसके समाज को सशक्तिकरण से उलट पराधीनता की तरफ ले जाती है। स्वाधीनता के बजाय पराधीनता की तरफ ले जाती है। समाज में आंतरिक संघर्षों को लगातार बढ़ावा दिया गया है।

इंडिया ग्रीन्स पार्टी यह मानती है कि भारत की संसदीय राजनीति एक ऐसी प्रतियोगिता में फंस चुकी है जिसमें संवैधानिक मुल्यों व संवैधानिक संस्थाओं और उनके उद्देश्यों को हासिल नहीं किया जा सकता है। इस स्थिति में एक कारगर राजनीतिक हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

भारत की मौजूदा स्थिति इस जगह पहुंच गई है जहां कि असमानता की नीतियों को राजनीतिक तौर पर स्वीकार कर लिया गया है। आर्थिक स्तर समाज में गहरी खाई दिखती है और सामाजिक स्तर पर भी वर्चस्ववादी संस्कृति हावी है। राजनीतिक स्तर पर बहुसंख्यक नागरिक मतदाता के रूप में दर्ज है लेकिन उसके चुनाव लड़ने के अधिकार से वंचित करने की तमाम नीतियां स्वीकार्य
बना दी गई हैं।

संसदीय राजनीति भागीदारी के उद्देश्यों को ही समाप्त प्राय: कर दिया गया है। विविधता पूर्ण समाज में लोकतंत्र का आधार-स्तंभ है। इस राजनीति के केन्द्र में कल्याणकारी राज्य की जगह वर्चस्ववाद है। संविधान निर्माता डा. भीमराव आंबेडकर ने जो चेतावनी दी थी उसका वास्तविक रूप सामने आ गया है। संविधान की दिशा के अनुरूप स्थापित कोई ऐसी संस्था नहीं है जिसे उसकी जगह
पर बने रहने दिया गया है।

नागरिकों के अधिकार, अभिव्यक्ति की आजादी से लेकर जीने के अधिकार तक का अध्ययन किया जाए तो नागरिकों को राज्य सत्ता ने कमजोर किया है। भारत के लोगों के सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाया है और उनके बीच तनाव व संघर्ष की स्थितियां विकसित की हैं।

नैसर्गिक अधिकारों पर भी हमले की प्रवृति बढ़ी है। हवा पानी और मिट्टी पर हमले की तरफ बढ़ गई है। पर्वायवरणीय ढांचा वर्चस्ववाद के निशाने पर है। नतीजे के तौर पर मनुष्य व अन्य जीवों के बीच संघर्ष के हालात भी बने हैं। इस प्रवृत्ति के बढ़ने के गंभीर संकेत ही दिखाई देते है। इस राजनीतिक संस्कृति में इस्तेमाल किए जाने वाला विकास का नारा वास्तविक अर्थों में आर्थिक,
सामाजिक और राजनीतिक सत्ता का केन्द्रीकरण है। भारत के संघात्मक ढांचे के चरित्र पर हमले का इससे सीधा रिश्ता है और सुरक्षा का अर्थ लोकतंत्र की जगह सैन्यकरण के विस्तार के रूप में दिखाई देता है।

इंडिया ग्रीन्स पार्टी यह घोषणा करती है कि संविधान में स्वतंत्रता, समता व बंधुत्व के महान उद्देश्यों को हासिल करने के लिए भारत के संघीय ढांचे के अनुरूप राजनीतिक संस्कृति विकसित करने के लिए उसके सदस्य हर संभव कोशिश करेंगे और उसके लिए हर संभव त्याग को स्वीकार करेंगे